Purusha Suktam Pdf in Hindi – पुरुष सुक्तम् | Lyricsbroker

Purusha Suktam Pdf in Hindi : Chanted by 21 Brahmins is a powerful mantra. Here is the pdf and lyrics in hindi. Presented on Mystica Music.

Purusha Suktam Pdf in Hindi 

हरी ॐ


सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात् |


स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् ||१||


जो सहस्रों सिरवाले, सहस्रों नेत्रवाले और सहस्रों चरणवाले विराट पुरुष हैं, वे सारे ब्रह्मांड को आवृत करके भी दस अंगुल शेष रहते हैं ||१||


पुरुषSएवेदं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यम् |


उतामृतत्यस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ||२||


जो सृष्टि बन चुकी, जो बननेवाली है, यह सब विराट पुरुष ही हैं | इस अमर जीव-जगत के भी वे ही स्वामी हैं और जो अन्न द्वारा वृद्धि प्राप्त करते हैं, उनके भी वे ही स्वामी हैं ||२||


एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः |


पादोSस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ||३||


विराट पुरुष की महत्ता अति विस्तृत है | 


 श्रेष्ठ पुरुष के एक चरण में सभी प्राणी हैं और तीन भाग अनंत अंतरिक्ष में स्थित हैं ||३||


त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुष:पादोSस्येहाभवत्पुनः |


ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशनेSअभि ||४||


चार भागोंवाले विराट पुरुष के एक भाग में यह सारा संसार, जड़ और चेतन विविध रूपों में समाहित है | इसके तीन भाग अनंत अंतरिक्षमें समाये हुए हैं ||४||


ततो विराडजायत विराजोSअधि पूरुषः |


स जातोSअत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुर: ||५||


उस विराट पुरुष से यह ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ | उस विराट से समष्टि जीव उत्पन्न हुए | वही देहधारी रूप में सबसे श्रेष्ठ हुआ, जिसने सबसे पहले पृथ्वी को, फिर शरीरधारियों को उत्पन्न किया ||५||


तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम् |


पशूंस्न्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ||६||


उस सर्वश्रेष्ठ विराट प्रकृति यज्ञ से दधियुक्त घृत प्राप्त हुआ(जिससे विराट पुरुष की पूजा होती है) | वायुदेव से संबंधित पशु हरिण, गौ, अश्वादि की उत्पत्ति उस विराट पुरुष के द्वारा ही हुई ||६||


तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतSऋचः सामानि जज्ञिरे |


छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ||७||


उस विराट यज्ञ पुरुष से ऋग्वेद एवं सामवेद का प्रकटीकरण हुआ | उसी से यजुर्वेद एवं अथर्ववेद का प्रादुर्भाव हुआ अर्थात् वेद की ऋचाओं का प्रकटीकरण हुआ ||७||


तस्मादश्वाSअजायन्त ये के चोभयादतः |


गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाताSअजावयः ||८||


उस विराट यज्ञ पुरुष से दोनों तरफ दाँतवाले घोड़े हुए और उसी विराट पुरुष से गौए, बकरिया और भेड़s आदि पशु भी उत्पन्न  हुए ||८||


तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पूरुषं जातमग्रत:|


तेन देवाSअयजन्त साध्याSऋषयश्च ये ||९||


मंत्रद्रष्टा ऋषियों एवं योगाभ्यासियों ने सर्वप्रथम प्रकट हुए पूजनीय विराट पुरुष को यज्ञ (सृष्टि के पूर्व विद्यमान महान ब्रह्मांड रूपयज्ञ अर्थात् सृष्टि यज्ञ) में अभिषिक्त करके उसी यज्ञरूप परम पुरुष से ही यज्ञ (आत्मयज्ञ ) का प्रादुर्भाव किया ||९||


यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् |


मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादाSउच्येते ||१०||


संकल्प द्वारा प्रकट हुए जिस विराट पुरुष का, ज्ञानीजन विविध प्रकार से वर्णन करते हैं, वे उसकी कितने प्रकार से कल्पना करते हैं ? उसका मुख क्या है ? भुजा, जाघें और पाँव कौन-से हैं ? शरीर-संरचना में वह पुरुष किस प्रकार पूर्ण बना ? ||१०||


ब्राह्मणोSस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत: |


ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्या शूद्रोSअजायत ||११||


विराट पुरुष का मुख ब्राह्मण अर्थात् ज्ञानी (विवेकवान) जन हुए | क्षत्रिय अर्थात पराक्रमी व्यक्ति, उसके शरीर में विद्यमान बाहुओं के समान हैं | वैश्य अर्थात् पोषणशक्ति-सम्पन्न व्यक्ति उसके जंघा एवं सेवाधर्मी व्यक्ति उसके पैर हुए ||११||


चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत |


श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ||१२||


विराट पुरुष परमात्मा के मन से चन्द्रमा, नेत्रों से सूर्य, कर्ण से वायु एवं प्राण तथा मुख से अग्नि का प्रकटीकरण हुआ ||१२||


नाभ्याSआसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्त्तत |


पद्भ्यां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकांर्Sअकल्पयन् ||१३||


विराट पुरुष की नाभि से अंतरिक्ष, सिर से द्युलोक, पाँवों से भूमि तथा कानों से दिशाएँ प्रकट हुईं | इसी प्रकार (अनेकानेक) लोकों को कल्पित किया गया है (रचा गया है) ||१३||


यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत |


वसन्तोSस्यासीदाज्यं ग्रीष्मSइध्म: शरद्धवि: ||१४||


जब देवों ने विराट पुरुष रूप को हवि मानकर यज्ञ का शुभारम्भ किया, तब घृत वसंत ऋतु, ईंधन(समिधा) ग्रीष्म ऋतु एवं हवि शरद ऋतु हुई ||१४||


सप्तास्यासन् परिधयस्त्रि: सप्त: समिध: कृता:|


देवा यद्यज्ञं तन्वानाSअबध्नन् पुरुषं पशुम् ||१५||


देवों ने जिस यज्ञ का विस्तार किया, उसमें विराट पुरुष को ही पशु (हव्य) रूप की भावना से बाँधा (नियुक्त किया), उसमें यज्ञ की सात परिधियाँ (सात समुद्र) एवं इक्कीस (छंद) समिधाएँ हुईं ||१५||


यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् |


ते ह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा: ||१६||


आदिश्रेष्ठ धर्मपरायण देवों ने, यज्ञ से यज्ञरूप विराट सत्ता का यजन किया | यज्ञीय जीवन जीनेवाले धार्मिक महात्माजन पूर्वकाल के साध्य देवताओं के निवास, स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं ||१६||


ॐ शांति: ! शांति: !! शांति: !!!


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Purusha Sukta Song Credits :-

Track

Purusha Sukta

Artists 21 Brahmins
Album Moksha
Copyright/ Label Mystica Music 

Purusha Sukta Video Song :

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